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रात्रि... मैं हताश हूँ और बेहोश भी। ऐसा लगता है कि सुबह से सीधे रात को ही मुझे खुद का ख्याल आता है..दिन भर मैं स्वयं से ही लापता रहता हूँ। आखिर इतनी व्यस्तता क्यूँ? ये महीना भी बीतने को हैं, यदि मैं खुद को स्वयं से तुलना करूँ तो मैं जहां था वहीं स्थायी हूँ।