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Khuuli kitaab hu main

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 खुली किताब सा हूँ लेकिन, कई राज़ छुपाए बैठा हूँ। लाखों बातें करके भी, जज़्बात छुपाए बैठा हूँ। पलकों में आँसू और आँखों में आस छुपाए बैठा हूँ कि तू आए, आए मेरे सालों से थामे इस इंतज़ार का हाथ पकड़ने, मेरी समझदार खामोशी को फ़िर से मेरे झल्लेपन के शोर में बदलने और हाँ इस दफ़ा ऐहसासोंकी अल्फ़ाज़ों से दोस्ती करा के ही मानूँगा दिल के दस्तावेज़ों को तेरी मेज पर यथार्थ सजा के ही मानूँगा। हाल-ए-दिल तुझको सुनाके ही मानूँगा..!! 🖤❤️