तुम्हारी ब्लाॅकलिस्ट तुम कहती थी हमेशा न कि तुम्हे डर लगता है एहसासों के दफ्न हो जाने से। हम मुस्कुराकर तुम्हें जबाब देते थे, तुम मेरी हो हमेसा के लिए हमे कोई जुदा नही कर सकता, याद है? तुम्हारी ब्लाॅकलिस्ट में एक नाम, एक नम्बर, एक चेहरा दफ्न है... कुछ दिनों से। अपने एहसासों की घुटन समेटे एक झरोखा ढूंढ़ रहा है बाहर निकलने का हमारा नाम उस ब्लू रोशनी वाले व्हाट्सएप पर तुमने ब्लाॅक कर रखा है। शून्य से नौ तक की गिनती वाले काॅल पर और ब्लू टिक वाले उस एप्लीकेशन पर भी तुमने ब्लाॅक रखा है, हमारा नम्बर, हमारा चेहरा तुम्हारी ब्लाॅकलिस्ट में बंद है वह तमाम सर्द रातें जब चाँद को निहारते हुये हमारी आँखो से कुछ आंसू टपक आते हैं। कहीं से झांकने की कोशिश करके हार जाती होंगी तुम्हारे नाम की हिचकियाँ। हम उदास हैं, यह ख़याल भीतर सालता है कि तुम तक क्या वो ख़त कभी पहुंचेंगे जो तुम्हारे नाम पर उस ब्लू टिक वाले एप पर हमने लिख भेजे हैं! तुम्हे कभी दिल तो करता होगा न! हमारे नाम को अपने भूले हुये ब्लाॅकलिस्ट से निकालकर पढ़ लेने का? या नहीं! तुम जानती हो न कि तुम्हारी लाॅकलिस्ट एक अनदेखी दीवार है हमार...