3am

 


जिंदगी, जिंदगी न रही। लगभग 10 दिनों से पता नहीं मेरे नींद को कौन खाए जा रहा है। हर दिन सुबह लगभग 3:13 में मेरी नींद खुल जा रही है। आज भी मेरी आंखें पूरे 3:13 में ही खुली। कमरा पूरी तरह से अंधेरे में घुला था। पंखा बंद था। पंखा क्यों बंद था मुझे मालूम नहीं। पंखे की जरूरत महसूस हो रही थी, परंतु शरीर उठ के पंखे को चालू करने के लिए राजी नहीं हो रहा था। मुझे ये कहने में झिझक नहीं होगी, कि मैं एक आलसी किस्म का इंसान हूं। पूरे जिस्म के ऊपर पसीने की बूंदे रेंग रही थी। कमरे की खिड़की खुली थी। पूरा शहर इस वक्त सो रहा था। मैं सोचने लगा कि कोई बीमार ही होगा जो इस वक्त जगा होगा। पूरा शहर इस वक्त एक विचित्र सन्नाटे में तैर रहा था। इस वक्त का सन्नाटा मेरे अंदर के रूह को सांत्वना दे रहा था। मैं उस वक्त तक बिस्तर पे ही लेटा था। गर्मी से लतपथ होने के बावजूद मेरे में इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं उठ के पंखे का बटन दवा दूं। मैने महसूस किया कि मेरे जिस्म को कोई जंजीरों से बांध रखा है। और मेरी आलस्पन देखिए मैं उन्हें छुड़ाने की कोशिश भी नहीं कर रहा हूं।


मेरी बीमारी क्या है मुझे मालूम नहीं। मैने कुछ समय बाद निर्णय लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, पंखे का बटन दवा इस गर्मी से उद्धार पाऊंगा। और मैं अपने आलस का गला घोंटते हुए, बिस्तर पे उठ बैठ गया। कमरा अब भी बिल्कुल अन्धकारमय ही था। खिड़की से रौशनी के कुछ कतरन मेरे कमरे में आ रहे थे। मैं उन कतरनों की कोशिश से अपने अव्यवस्थित कमरे को देखने की पूरी कोशिश कर रहा था। अंधेरे में मैं खुद को काफी अच्छे से देख सकता हूं। फिर एक दम से मेरे मन में एक ख्याल आया कि अगर कोई इस वक्त दुआ मांगे भी तो किससे मांगे। इस वक्त तो ईश्वर भी सोते रहेते होंगे। 


मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। रौशनी की उन्हीं कतरनों के सहारे मैं पानी की बोतल को ढूंढने लगा, बिल्कुल उसी तरह जैसे एक शराबी शराब को ढूंढता है। मेरा गला पूरी तरह से सूख चुका था। मुझे अगले ही पल पानी पीनी थी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अगर अब एक और पल मुझे पानी नहीं मिला तो मैं प्यास से दम तोड़ दूंगा। मुझे पानी की बोतल मिल नहीं रही थी।  बोतल मेरे सामने ही टेबल पर रखी थी। मैने जल्दी से पूरी बोतल खत्म कर दी। बिल्कुल उसी तरह जैसे एक भूखा बच्चा दूध की बोतल को खत्म कर देता है। ऐसा महसूस हुआ जैसे कितने सदियों से प्यासा था। ख़ैर.. पीने के बाद काफी सुकून मिला। 

जीवन के 25 वर्ष झेल लेने के बाद, इतना तो समझ में आ गया कि जब तक आप खुद पैसे नहीं कमाते (एक अच्छी रकम) तब तक आपको कहीं से कोई इज़्ज़त नहीं मिलने वाली और तो और ये दुनिया आपको कुत्ता समझेगी। कोई मायने नहीं रखता आप कौन और क्या करते है। या आपकी पुस्तैनी जमीन कितनी है। ⛰️

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