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Showing posts from March, 2022

hua ek haseen hadsa 🫀✨☄️

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तुमसे प्रेम किया है, यक़ीनन तुम मेरी पहली मोहब्बत नही हो, ये हादसा एक बार पहले भी हुआ है मेरे साथ..उस हादसे में सब कुछ बिखर गया था मेरा, उजड़ी हुई सांसों के साथ जीना मुश्किल हो गया था.. बिखरे सपनों को समेटने में कई साल लग गए थे..अंधेरे से प्रेम और ज्यादा रौशनी डराने लगी थी..रोज़ एक नया सवेरा जहाँ उम्मीदों की किरण बनकर सामने आता है, मैं हर रात को आख़िरी समझकर अपनी आँखों को कसकर बंद कर लिया करता था.. कभी-कभी तो छत की बक-बक सुनते और खिड़कियों से बातें करते हुए ही रात सुबह में बदल जाती.. ख़ैर ये एक दौर था, जो बीत गया..फिर तुमसे मुलाक़ात हुई..कब दिन में हो जाने वाली हमारी 4-6 बातें, 1-2 घंटो में बदल गयी इसका पता ही नहीं चला..मेरा तुम्हारी तऱफ बढ़ता हुआ हर एक कदम ऐसे लग रहा था जैसे मैं किसी ढलान वाले रास्ते पर चल रहा हूँ..बस मैं बढ़ता गया..और एक दिन हम ठीक एक दूसरे के एकदम आमने सामने आ गए..अब समय आ गया था हमारे साथ चलने का..मैंने बताया था कि तुम मेरी पहली मोहब्बत नहीं हो.. पर तुमसे हुई इस दूसरी मोहब्बत का हर एक एहसास मेरे लिए एकदम नया है, ऐसा पहले कभी महसूस नही हुआ..सब कुछ कितना आसान लगता है तुम्हारे...

मोक्ष 🫀✨

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मोक्ष मशरूफ रहा एक रोज़ कहने को कुछ ना रहने को ना सुनने को ना सुनाने को बस थी एक झलक दिखाने को मेरा चेहरा वो उदासी से भरा झुरियो की चादर ओढ़े हुए जिसमे मे खुद को भी ना देख पाता जिसमें फक्त बस वक्त का गुजरना और बर्बाद होना दिखाई पड़ता था जैसे एक अरसे से ज़िंदगी किसी कैद में गुजारी हो आज़ाद रहते हुए भी जैसे किसी अपने के पास रहा हो हमेशा उससे जुदा रहते हुए भी किसी मंदिर/मस्जिद में रहा हो बिना हाथ जोड़े हुए जब जवानी निकली तो आजादी मिली ऐसी आजादी जिसमे ना चलना मुनासिब ना ठहराना ना कुछ कहना मुनासिब ना कह पाना दुत्कारी हुई ज़िंदगी ज्यादा अच्छी रहे उससे जिसको मरते ना मरते हुए ऐसी ज़िंदगी मिले बचपन से जवानी, जवानी से रवानी के इस सफर में बस सफर ही मेरा रहा ना अपना कोई दिखा ना गैर ने हाथ बढ़ाया एक उम्र गुजारी इस सफर में मंजिल मिलते मिलते मंजिल की ख्वाहिश ही अधूरी रह गई अब तो ये सफर ही सुहाना लगने लगता था ना किसी की फिक्र ना किसी का जिक्र चला पड़ा तो बड़ी दूर चला नहीं तो बैठा, उठा और फिर चला यही रीत रही जिंदगी की बस चलते जाना था मुसाफिर बनना आसान नहीं कही दूर निकलना पड़ा था कही बड़ी दूर से अपने के...

dard ki ek nai dastan ☄️

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सुनो तुम....हा तुम ही से कह रहा हूँ..  तुम्हारे द्वारा दुत्कारे जाने के बाद से ही सालों से खुद की खबर न रखने वाला ये लड़का अब तुम्हारे बिना एक पल नही गुजार पाना बहुत बेबस लाचार ..बे जान हो गया हु बेइंतेहा.! ख्वाहिश पनपति है की सीधा चला आऊं तुम्हारे पास वहां जहां तुम  मुझे पूरे हक से रोको और मैं सारी दुनियादारी भूल कर रुक जाऊं.. तुम्हारी कोई बात हमसे कभी काटी नही गई.. बात काटना तो दूर मैंने पलट कर कोई सवाल तक नही किया.. क्योंकि प्रेम थोड़ी कम था तुमसे पर तुम्हारी इज्जत ज्यादा करता था शायद ऐसी ही कई और वजहें हो जिन्हें तुमसे कभी कह नही पाया और बता नही पाया कि तुम कितनी जरूरी और बेशकीमती हो मेरे लिए बस एक बात कहना चाहता था.. हर दिन हर पल तुम्हारी यादें मुझे अपने आग़ोश में तीव्र गति से कस ती ही चली जा रही है और अब ये कसाव कभी - कभी मुझे सांस लेने में तकलीफ देने लगता है इस बन्धन को खोल कर मुझे अपनी बाहों में समेट लो.. एक बार टूट कर तुम पर बिखरना है आखरी तो नही पर लगभग आखरी इच्छा है ये.. 🖤 #दर्द #तन्हाई #पूजा 

tanhai 🐚

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निंद्रा के लिये शरीर के थकान से अधिक आवश्यक मन की शांति होती ह किन्तु रात्रि में मेरा मन बहुत अशांत होता ह इसका कोई विशेष कारण तो नही ह! शायद शांत वातावरण में मस्तिष्क को दुखों आदत पड़ी हो मैं हमेशा स्वंम को अपने मस्तिष्क से भिन्न समझता हूं क्योंकि इससे मुझें अपनी भावनाओं को समझने में सहायता मिलती ह! किन्तु अधिक भावुकता के कारण मेरा मेरें दुखों पर नियंत्रण न के बराबर होता ह! मैं ख़ुश तो रहना चाहता हूं किन्तु मेरा मस्तिष्क हमेशा मेरे विपरीत होता ह! उसे दुःख से शीतलता और मुझें असहनीय पीड़ा मिलती हैं। #bitturaja4200

wakt ka maara 🦪

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दु:ख ये भी है कि अब दु:ख नहीं रहा. रहा भी तो ठीक वैसा सजल नहीं रहा. घाव सूख गया, दाग़ छोड़ गया. रहा तो अब भी वहीं पर अब दुखता नहीं. दु:ख है इसी का.  ऐसा नहीं है कि याद करता हूँ दु:ख की दिनचर्या. या चाहता हूँ कि लौट आएं वो दुखियारे दिन. वे बीत गए, भला हुआ. मुझे रिक्त कर गए. यों बदला कुछ नहीं. जिन कारणों से दु:ख था वो तमाम अपनी जगह जस के तस रहे. बस धीरे धीरे जैसे रात का आकाश हलके रंग का हो जाता है, कोई पाखी बोल पड़ता है, भावभीनी भोर खिल जाती है, वैसे ही चित्र बदल गया. तारे छुप गए. तारे टूटे नहीं. ऐसे ही दु:ख भी अब आँख से.. आँख से ओझल लेकिन है अब भी वहीं तमाम चीज़ें एक उम्र जीकर मर जाती हैं दु:ख भी एक मुद्दत के बाद रहता नहीं दु:ख का यों एक जीवन जीकर अपनी मौत मर जाना बुरा है दु:ख को ऐसे मरना चाहिए कि कोई आए तो आप हठात शिक़वा करो कि अब आई हो, पता है मैंने कितना रास्ता देखा, कैसे नाम पुकारा कितना रोया और ये कहके रो ही पड़ो सच में उससे लिपटकर. दु:ख को ऐसे मरना चाहिए. दु:ख को ऐसे नहीं मरना चाहिए कि आँख खुले और आप देखो, कहीं कोई नहीं आया है, कहीं कुछ नहीं बदला है, और तब आप बांधने लगो मन की ...