doha
रतन अमोलक परख कर रहा जौहरी थाक।
दरिया तहां कीमत नहीं उनमन भया अवाक।।
धरती गगन पवन नहीं पानी पावक चंद न सूर।
रात दिवस की गम नहीं जहां ब्रह्म रहा भरपूर।।
पाप पुण्य सुख दुख नहीं जहां कोई कर्म न काल।
जन दरिया जहां पड़त है हीरों की टकसाल।।
जीव जात से बीछड़ा धर पंचतत्त को भेख।
दरिया निज घर आइया पाया ब्रह्म अलेख।।
आंखों से दीखे नहीं सब्द न पावै जान।
मन बुद्धि तहं पहुंचे नहीं कौन कहै सेलान।।
माया तहां न संचरौ जहां ब्रह्म को खेल।
जन दरिया कैसे बने रवि-रजनी का मेल।।
जात हमारी ब्रह्म है माता-पिता हैं राम।
गिरह हमारा सुन्न में अनहद में बिसराम।
दरिया तहां कीमत नहीं उनमन भया अवाक।।
धरती गगन पवन नहीं पानी पावक चंद न सूर।
रात दिवस की गम नहीं जहां ब्रह्म रहा भरपूर।।
पाप पुण्य सुख दुख नहीं जहां कोई कर्म न काल।
जन दरिया जहां पड़त है हीरों की टकसाल।।
जीव जात से बीछड़ा धर पंचतत्त को भेख।
दरिया निज घर आइया पाया ब्रह्म अलेख।।
आंखों से दीखे नहीं सब्द न पावै जान।
मन बुद्धि तहं पहुंचे नहीं कौन कहै सेलान।।
माया तहां न संचरौ जहां ब्रह्म को खेल।
जन दरिया कैसे बने रवि-रजनी का मेल।।
जात हमारी ब्रह्म है माता-पिता हैं राम।
गिरह हमारा सुन्न में अनहद में बिसराम।
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thanks god blas you