बात समझ की है

 मैं समझता हूं कि लोग मुझे समझते हैं,पर क्या करूँ कुछ समझ नही आता क्या सच है और क्या काल्पनिक,जीवन मे ठहराव है पर मन बेचैन है,जीवन मे सुख है लेकिन इसका एहसास नही है,जीवन मे हर चीज़ सही जा रही,केवल मैं ही ठहरा हूँ, स्वयं के बोझ तले,और गिरता जा रहा हूँ एक गहरी गर्त में....अब वक्त ही मेरा कुछ कर सकता है,


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