Lover

बाबस्ता है ज़िन्दगी का अपने जमीर से,
उल्फतों का दौर है मेरे ही लकीर में,
उम्मीद का दामन छोडूंगा न तब तक,
जीत न जाऊं अपनें ही रक़ीब से...

फख्र है मुझे अपनें इबादत के आशियानें पर,
छोड़ू न जिसे कभी वक़्त के पैमानें पर,
पाना तो मुझे लक्ष्य हर हाल में है,
चाहे ठोकर मारना पड़े कमज़र्फ से जमानें पर...

राह में मुश्किलें आये तो परवाह नहीं,
जिसे पाना है उसके अलावा कोई चाह नहीं,
मुमकिन हो गर जान जाये खुद से वो,
वर्ना खुदा के खुदाई पर विश्वास नहीं...

Comments

Popular posts from this blog

एहसास 🤞

समस्या 🦂

ऊफ़ वो लड़की 💌