सिलसिले चाहते के 👀

बादल के टुकड़े हैं इतने
धरती पे प्यासे हैं कितने

जिस्म तो बस एक मिला है
पाया अंदर रूप हैं कितने

ढ़ाई अक्षर प्रेम का पढ़के
रह गए तन्हा ही कितने

हैरां हूं मैं गिनते-गिनते
आईने में तस्वीर हैं कितने





एक सिलसिला सा चल रहा है
दिल आंसुओं में गल रहा है

कभी झांककर देखा अपने अंदर
हर तरफ वहां कुछ जल रहा है

आग लगी है रूह के धागे में
जिस्म मोम सा पिघल रहा है

बहुत साफ है मन का आईना
आंसुओं से जब वो धुल रहा है






रातभर जिसने मुझे याद किया
वो दिखा तो कुछ न बात किया

आज भी उसने बड़ी खामोशी से
जाने क्या-क्या फरियाद किया

टिमटिमाती हुई दो आंखों से
कुछ सितारों को बर्बाद किया

बांधकर हमसे अपने दिल को
उसने हमको आजाद किया




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