दिवानी
अक्सर उन्हीं राहों से गुजरती रही जिंदगी,
जिन राहों पर अपना आशियाना न था।
याद भी आती रही तो उसी शख्स की,
जो कभी भी अपना दीवाना न था।
भटकते रहे तमाम उम्र उन्हीं गलियों में,
जिनमें कहीं भी अपना ठीकाना न था।
बचाते रहे औरों को अश्कों की बरसात से,
खुद को बचा सके वो शामियाना न था।
घिरते गए सवालों के कैद में,
महफूज़ रहने का कोई बहाना न था
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