दर्द का मारा हूँ
बेकरारी का मारा हूं कुछ इस कदर
दिन गुज़रते हैं पर लम्हा दर लम्हा दर
नाउम्मीदी ने दिल में है घर कर लिया
कैसे होती है पूछो ना अब रहगुज़र
खुद को बर्बाद करने की साजिश रची
और भरोसा लिया उनकी बातों पे कर
ये मिज़ाज़ ए मसीहाई कुछ खास है
पिंजरा खोला मेरा और दिए पर क़तर
मुझको देके ज़ख्म उनमें भर के नमक
कहते हैं दर्द से यूँ कराहा न कर
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thanks god blas you